Wednesday, September 19, 2007

मुझको मेरे माज़ी ने बहोत कुछ सिखाया है,
पर ये दिल-ऐ-गाफ़िल कभी कुछ सीख पाया है,
कमबख्त बहोत है ये उम्मीद की किरन,
कि सुबह के ख्याल ने शब भर जगाया है.

1 comment:

नि:स्वार्थ... said...

wah mere shayar
subah ke khayal ne shab bhar jagaya hai....