वो तुम्हारी पुर-सुरूर आंखों का मुड़ना इस तरफ़,
वो मेरे दिल का धड़क के पल को रुक जाना,
वो तेरा मुँह को दोबारा फेर लेना उस तरफ़,
इस अदा पर वो मेरा सजदे में झुक जाना,
हर नाज़ तेरा ऐ परिरुख अब भी वही है,
अंदाज़ मेरा ऐ परिरुख अब भी वही है.
वो तेरा ज़ुल्फ़ों से अपनी तंग होना बारहा,
वो मेरा अन्दर के आशिक का मचल जाना,
वो तेरे होंठों का खुलके बंद होना बारहा,
वो मेरा ईमान का गोया फिसल जाना,
हर नाज़ तेरा ऐ परिरुख अब भी वही है,
अंदाज़ मेरा ऐ परिरुख अब भी वही है.
No comments:
Post a Comment